Tuesday, 28 June 2016

19 जनवरी 1990 The Holocaust Day

कश्मीरी पंडितो का घाटी  से विस्थापन शुरू हुआ 1989 से ,विस्थापन एक हल्का शब्द  है वास्तविकता में अगर ये कहा जाए  की उनको खदेड़ दिया गया तो अतिश्योक्ति  नहीं होगी | विस्थापन की प्रक्रिया भले ही 1988-89 में शुरू हुयी पर संकते उसके पहले से साफ़ थे भविष्य  कैसा होगा , कश्मीरी पंडितो  ने इसको एक हाल फ़िलहाल की समस्या मान के नज़रन्दाज किया , या इसके विरोध का साहस  नहीं जुटा पाए , या संख्याबल और दहशतगर्दो के खुले आम , कत्ले आम के खौफ से आत्म समर्पण सा कर के अपना सब कुछ जमीन घर छोड़ के वह से निकल गए | वजह आप कुछ भी मान सकते हैं ढूंढ सकते हैं लेकिन किसी  भी लेख में , उस समय के अख़बार में आपको ये खबर नहीं मिलेगी की कश्मीरी पंडितो ने भी विरोध में हथियार उठाये हों , यूँ तो कश्मीरी पंडितो पर जुल्म नयी बता नहीं थी , इससे पहले भी देश की आज़ादी के बाद मुस्लिम दंगो में  उससे पहले डोगरा वंश के  आधीनता में , उससे पहले पठानों  के साम्राज्य में भी उनपर जुल्म होते रहे पर ये ढाई  दशक पहले  की घटना का जिक्र इस लिए है क्यूंकि अब पंडितो  के पुनर्स्थापन पर तरह तरह की     बात-चीत बयां-बाजी सुनने को आ रही है |

1985-1989 के बीच में कश्मीर में लाल चौक पर बस वाले चिल्ला- चिल्ला  के सोपोरे की बसों में सवारी भरते थे , यासीन मलिक (  COMAANDER I CHIEF OF JAMMU KASHMIR LIBERATION FRONT –JKLF) उन सबको कमांड  करता था और नौजवान बसों में भर भर  के सरहद पार पाकिस्तान  में आतंकी  ट्रेनिंग के लिए भेजे जाते थे| बसों  की बसे  भर के जाती और बसों की बसे भर के आती थी , वापस आ के वो सब खुले आम सडको पर AK 47 ले के निकलते थे , रैलियाँ निकालते थे सडको पर हुजूम के हुजूम चलते थे नारे बाजी करते  हुए , हम क्या चाहते आज़ादी , ये वो चार शब्द  हैं जिनको सुन के किसी  भी कश्मीरी पंडित , हिन्दू और वहा उस वक्त  रहे सिक्खों  की रूह तक काँप जाती है | इन जुलूसो  के आगे उन आतंक वादियों ने पहले निशाना बनाया  वहा की सरकारी नौकरियों में काम करने वाले कश्मीरी पंडितो को , कश्मीरी पंडितो  की हत्याए आम बात हो  गयी थी , रोज बस दो ही तरह की खबरे होती थी , मुजाहिदीन आतंकियों के जुलुस और कश्मीरी पंडितो पर हमले की | एक वरिष्ठ और नामचीन कश्मीरी पंडित  टीका लाल टिप्पू ने यासीन मलिक को एक खुला ख़त लिख कर के पुछा  की आज़ाद कश्मीर के जिस संघर्ष के नाम पर ये तनाव , भय और आतंक का माहौल बना है उस आज़ाद कश्मीर में कश्मीरी पंडितो की क्या भूमिका होगी , उनके लिए आजाद कश्मीर में क्या स्थान होगा | इस ख़त का  जवाब JKLF के आतंकियो ने उनको दिन दहाड़े  गोली मार कर  दिया | ऐसी ही एक और घटना में एक सरकारी अधिकारी थे डी के कुंजू साब , आतंकी  उनके घर में घुसे तो वो एक चावल  के ड्रम  में छुप गए , पूरे घर के चप्पे चप्पे में तलाश की जब वो नहीं मिले तो आतंकी बहार निकलने लगे तो पड़ोस की एक औरत ने इशारा कर के बताया की कुंजू कहा छुपा है , दहशतगर्द  अन्दर गए और उनको गोलियों से छलनी कर दिया | हिजबुल मुजाहिदीन  ने 4 जनवरी 1990 को एक उर्दू अखबार आफ़ताब  में साफ़ साफ़  खबर  छपवाई कर कश्मीरी पंडितो को कश्मीर छोड़ने की  धमकी दी , इसी खबर को एक दुसरे उर्दू अख़बार अल-सफा ने फिर से छपा कुछ दिन बाद , इसके बाद 19 जनवरी 1990  को रातो रात लगभग  एक लाख पंडित परिवार सहित घाटी छोड़ के जम्मू आ गये| यहाँ भी उनके साथ कम ज्यादती नहीं हुयी  , उनकी मजबूरी  को देखते  हुए जम्मू के हिन्दू परिवारों ने 4-5 गुने दाम पर  उनको माकन किराये पर दिए, हर चीज महंगी  मिलती थी , असुरक्षा अब भी थी जान का खौफ नहीं था पर और कई तरह के कष्ट उठाते हुए , डर -असुरक्षा के संग  निर्वासन को झेला हैं पंडितो के कुनबे ने | इतना सब जान के ऐसा लगता है कि शुक्रिया ऊपर वाले का कि हम कश्मीरी पंडितो के वंश में नहीं पैदा हुए , जाने कैसे झेली है इतनी पीड़ा उनके परिवारों ने बच्चो ने , बुजुर्गो ने | जिन घरो से लड़के आतंकी  बन गए थे उनके घर वालो ने कश्मीरी पंडितो के घरो पर इशान बना दिए थे की जब ये मर जायेगा या भाग जाएगा तो इस घर पर कौन कब्ज़ा करेगा ये तय करने के लिए , वहां के ट्रक वालो ने कश्मीरी पंडितो  को पलायन के समय सामान ले  जाने से मन कर दिया की सामान नहीं ले के जाओगे , जब कुछ लोग जम्मू से ट्रक वालो को ले के आये तो पड़ोसियों ने सामान नहीं ले जाने दिया  की जाना है तो खाली हाथ जाओ नहीं यही मरो | उस समय जिन जिन के घर  के लोग आतंकी बने उनका आस पास के गाँवों  में रुतबा बढ़ा मान लिया जाता था , कोई उनसे बहस  नहीं करता था , लोग उनसे डरते थे जब फ़ौज ने वापस सालो तक की लडाई के बाद स्थिति आज की हालत में लायी है तब भी JKLF के जो आतंकी मारे गए या जिन्होंने आत्म समर्पण कर दिया  उनको यासीन मलिक पेंशन देता है 1000 से 3000 तक , कहा से आता है ये पैसा ये किसी  से छुपा नहीं है |




इस तरह के हालातो में जिनको कश्मीर छोड़ कर , घर जमीन छोड़ कर भागने को मजबूर कर दिया तो उनके पुनर्विस्थापन पर हुर्रियत विरोध करती है और कहती है की ये लोग विशेष कालोनी में  नहीं  पहले जैसे रहते थे वैसे रहो | कहाँ रहें जा के उन घरो में जिन पर दहशतगर्दो  के परिवार वालो ने कब्ज़ा कर लिया ,वहां जहा पड़ोसियों ने बता दिया की कुंजू साब कहा छुप्पे हैं , वह जहा दूध वाले , धोबी , सब्जी वालो ने निशान लगा के रखे थे की जब ये घर खाली होगा तो कौन कब्ज़ा करेगा ? कहाँ रहें जा के ?

और कहने की बात देखिये की ये प्रवचन कौन दे रहा है यासीन मलिक, जिसने इस सवाल के जवाब में की पंडितो का आजाद कश्मीर में क्या हिस्सा है , क्या भूमिका है का जवाब दिन दहाड़े  गोली मार कर दिया था | वही यासीन मलिक जो की नौजवानों को बसे भर भर के आतंकी  ट्रेनिंग के लिए पाकिस्तान भेजने का इन्तेजाम करवाता था | वही जो कि आज भी आतंकियों और उनके परिवार वालो को पेंशन  बांटता  है | हमारी सरकारे क्यू हुर्रियत को कश्मीरी नेतृत्व का हिस्सा मानती  है , हुर्रियत  उस बन्दर जैसा है जो दोनों बिल्लियों  की रोटी पे हाथ मार रहा है दोनों सरकारे उनको अपने तरफ करना चाहती है और दोनों उनको पैसा , घर सुरक्षा सब देती है | पाकिस्तान के लिए तो हुरियता ने क्या नहीं किया ,आतंकीयो  की भर्ती ट्रेनिंग ,भारतीय जमीन पर हमले , क्या कुछ नहीं किया , भारत के लिए क्या किया ?

जब तक ये हुर्रियत के स्वघोषित कश्मीरी नुमाइंदे , यासीन मलिक जैसे आजाद घूमेंगे कश्मीर में तब तक पुनर्विस्थापन की कितनी  भी योजना बना लीजिये शायद  ही कोई वापस जाना  चाहे | ढाई  दशक लग गए उनको अपनी टूटी  फूटी  जिंदगी  को बटोर के फिर से वापस एक घर जैसा बनाने में और अब कहते हो की चलो वापस चले वहीँ जहा यासीन मलिक जैसे आज़ाद हैं , वहीँ जहाँ आज भी तिरंगा फहराना  सबके बस की बात नहीं , वही वापस चले ?


sources : 

2-Our moon Has Blood Clots -Rahul Pndita 
3-Curfewed Nights -Bashrat Peer

various articles  on Internet and  media reports 


Tuesday, 21 June 2016

India's अमृतस्य पुत्रा

                                                                         18th june  2016, RBI Governor Raghuram Rajan wrote a letter to PM and briefed him about the work done by him during his tenure as  Top boss of RBI. This letter contained more than briefing. He also informed Govt. that after the end of his tenure, he would like to go back to academia. He spilled cold water on the rumors about who will rule south Mumbai. In the aftermath of this letter came a strong reaction of people on social media , it seems Mr. Rajan  an RBI Gov.  has a  very deep fan following  . It left many baffled How , Mr, Rajan garnered  such support for himself as an institutional head ?
 Mr. Rajan during has always been so apt and frank enough to express his view on certain important matters and issues leaving frenzy politician and the people in govt.   In His Governor’s speech at the Twentieth Lalit Doshi Memorial Lecture on August 11, 2014 at Mumbai , He explained why corrupt politician wins elections in India, though his description does not contain any new stuff , people more or less know these things but , it is a rare occasion somebody heading an important institute like RBI came out in the open saying that. Mr. Rajan took on directly on Kingfisher CEO Vijay Mallya by saying defaulters does not flaunt money. He didn’t stay back by just saying , but also pushed the banks to go after him for the recovery and actions. At one point , he got a look out notice issued against Mallya , same was revoked by central govt., for reason best known to them and Mallya flown away to London.




It is not that first time , we have seen such a bold and honest man on the job. India is blessed to have such people on different occasions but they have had a different philosophy or might be due the protocol of their service terms they rarely came out to make such bold statements. One thing is common for all  such glorious and decorated office bearers is when they got on the job , they made their impact seen and heard . It is not too far in the past , India had an honest and brave CAG , VInod Rai . What he did during his tenure was unprecedented. A dozen of Babus , Ministers and CEO of top telecom gone behind Bars and still fighting legal battle in anscam that shook the entire nation. Chief Justice of  Hon’ble Supreme Court of India had said , I have never seen this much number of zeros in any Govt. document. It would not be hyperbolic to say that, CAG finding and unearthing of various scams was majorly responsible for a change in the power corridors of Delhi. He gave the action to the unheard voices of corruption swollen voices, he gave the opposition political parties a momentum to charges against the ruling party.
I would like to quote another example of one such decorated officer , T.N.Seshan Chief Election Commissioner (1990-96). Muscle power became an important tool for winning an election in India , booth capturing , open wallet ,  one man making all votes for village and getting the green signal from officers was not unusual. Criminals were being protected, promoted and employed by politicians especially in the northern part of country. This gentleman came and changes the whole playground and   strictly implementing code of conduct, a protocol for utilization of forces got changed, voter IDs and certain other things. Now a days, all those usual practices are not even possible in the dreams of any politician, gone were the days when they can not even bother about vote with money and muscles, now at least they got to be humble and beg for vote once in a while . Mr. T.N.Sheshan taught the officers, what it meant to ride a lion and the legacy , he left behind is glorious . India has seen more fierce Chief Election commissioner in coming time like , Mr. M.S.Gill , Mr. J.M.Lingdoh .

In our country , It was unimaginable to even think that any Govt. project will completed in time without even being compromised with the standard and will offer world class service . E.Sreedharan did it all, not once, not twice, not thrice but 5 times, He did it. If anecdotes are to be believed, it was said that one of his key assignments was as punishment for giving an unpleasant frank reply to a minister. That Political hound certainly didn’t like the honest answers and send him to Pamban Bridge project at Rameshwaram. Outcome of thatis legendry since then , The chance of glory was Konkan railway that got him in the notice to everyone , that established among politician even if you don’t like him being honest frank and fearless , you need him. Delhi Metro is and will remain the most shining title under his belt.

We can come up with more examples like this, but the idea is to support the honest and frank people at the helm of these institutions. They not only perform beyond imagination, but also leave a wake of leadership, install a new culture that will cherish long way in the future.

शृण्वन्तु बिश्वे अमृतस्य पुत्रा , ये धामानि दिब्यानि तस्थुः ("Listen, O the children of immortality the world over. . .)- Shvetashvatara Upanishad, Chapter II, Verse 5. As the verse says Such people in our times are like अमृतस्य पुत्रा (Immortal Child ) . Institutions and organization will bloom under their guidance and leadership  These are the reasons why so many people love , respect, admire and support executives like Mr. Raghuram rajan , Mr, E.Sreedharan , Mr, T,N.Sheshan and many more less known or unheard officers .


Saturday, 4 June 2016

मथुरा का राम वृक्ष - जड़ से छाया तक

                                       रामवृक्ष यादव और उनके गुर्गो  ने लगभग 200 एकड़ सरकारी जम्मीन पर कब्ज़ा किया , जमीन शहर  के एकदम बीच में थी ,  जिलाधिकारी  बंगले  से नजर  की दूरी में थी , कचहरी  के पास से रास्ता जाता था | इस रामवृक्ष ने एक CULT जैसा बनया हुआ था खुद को नेता जी सुभाष चन्द्र  का अनुयायी बताता था , प्रधान मंत्री और राष्ट्रपति के अधिकार  को मानाने  से इनकार करता था , संविधान में इसकी आस्था नहीं थी | बताया जाता है की इसने कब्ज़ा की हुयी जमीन के रस्ते में कहीं चुंगी जैसा कुछ लगा रखा था , आते जाते लोगो से उनकी भारतीय  नागरिकता का सबूत माँगा जाता था| जवाहर बाग़ जो की जमीन इसने कब्ज़ा कर राखी थी उसमे आने जाने वाले लोगो से ये गेट पर एंट्री अक्र्वाता था , अन्दर एक कैंटीन  जैसा कुछ चलता था जिसमे 300 -400 लोगो  को खाना  खिलाया जाता था और घरेलु  जरुँरतो की चीजो  को बाजार  भाव से कम में बेचा जाता था |यहाँ की भीड़ बढ़ने के लिया आस पास के इलाको से गरीब और बेघर लोगो  को जमीन और झोपड़ी दी गयी , उनको खाना दिया जाता था | इसके गुर्गे हथियार बंद थे और प्रशासन से लड़ने की तयारी में थे | इसको मानने वाले कौन थे ये मुझे पता नहीं पर बात चित सुन के लगता है की मुरख जरुर रहे होंगे , जो लोग इस बात पर भरोसा कर ले की एक शक्श जिसकी औकात  भारतीय प्रशाश्निक व्ययवस्था के आगे भुनगे भर की नहीं वह अपनी सत्ता आने पर 10 रु में 40 लीटर डीजल बेचेगा और सोने के सिक्के चलवाएगा , सोना 12 रुपये टोला बिकेगा उसे समझदार मै  नहीं मान सकता | यह तो तय है की उसको इतना सब करने के लिए कहीं से पैसा मिल रहा था , कहीं से बढ़ावा मिल रहा था वो कौन लोग थे जो इस  CULT के पीछे छुपे हुए था , उनका क्या उद्देश्य था इसका पता लगा पाना मुश्किल ही नामुमकिन होगा | हनव नजदीक आते हैं तो ऐसे कई ढोंग बनते बिगड़ते रहते हैं |
ये सब देख के लगता है कितना आसन है सी देश में CULT बन जाना | उलजलूल की अतिवादी बाते करिये , इन बातो के प्रेरणा में किसी महापुरुष का नाम या धर्म का आवरण धन्किये , कुछ राजनीतिक संरक्षण और पैसा बस बन गया आपका  अपना CULT , अब आप स्वतंत्र हैं कुछ भी करने को | इसे पूर्व हरियाणा में भी ऐसे ही दो  CULT बाबा  टाइप लोगो ने सरकार से लडाई लड़ी थी , रामवृक्ष ने जल्दी कर दी नहीं तो वह भी दो चार दिन लडाई लड़ सकता था | खैर है की ये रामवृक्ष हिन्दू धर्म का था , मुस्लिम नहीं था वरना आतंकवादी और देशद्रोही कहते ईसको , हालाँकि इसने खुले शब्दों में संविधान पर अविश्वास प्रकट किया है पर इसको अभी तक देशद्रोही नहीं कहा गया , इसकी modus oprandi  नक्सलियों जैसी नहीं लगती क्या आपको ? देश के सबसे बड़े प्रदेश में राजधानी दिल्ली से लघभग ७ घंटे की दुरी पर मथुरा में  कोई भी पूरी व्यवस्था को धता बता के खुद का शाशन शापित कर लेता है और 2 साल तक कोई कठोर कार्यवाही नहीं होती | कार्यवाही करने में उत्तर प्रदेश पुलिस के दो अधिकारी  शहीद हो जाते हैं और मुख्यमंत्री जी मुआवजा घोषित कर के मुक्ति पा जाते हैं | पहले इस हद तक बढ़ावा दिया जाता है की पुलिस को कार्यवाही करने न दी जाये फिर जब पानी सर के ऊपर हो जाए तो पुलिस  को आगे बढ़ा दिया जाए | यदि इनके पास हथियार नहीं होते या पुलिस ने पहले गोली चलायी होती और कोई  बची या महिला को गोली लगती तो हम सब पुलिस को गलिय दे रहे होते की देखो कितने जालिम लोग हैं निहाठे बचाओ पर गोली चला दी |  भले ही ये निहाठे महिलाओ बछो की आड़ में कोई अरबो की जमीन कब्ज़ा कर के हथियार बंद सत्याग्रह चलाता रहे | इस सत्याग्रह के सत्य में लालच , राजनीती और चुतियाप से अधिक कुछ सच  नहीं है | इसके इतर जो सच है वो कटु है  दुखद है की पुलिस वालो को जान गंवानी  पड़ी| बधाई जो मथुरा के नागरिको को इन सब से मुक्ति मिलने की , साधुवाद है उन सबका सहयोग के लिए |
इसके आगे क्या लिखा जाये क्या कहा जाये –बाकि जो है सो है ही |

Saturday, 28 May 2016

भारत सरकार की Intellectual Property Right नीति

भारत सरकार ने Intellectual Property Right केविषय में अपनी नीति स्पष्ट कर दी है, कैबिनेट नेभी इसको मंजूरी देदी है - अलगअलग समूहों केअलग अलग मत हैं-


एक वेबसाइट THEWIRE.IN का कहना है की , जिस समिति ने इस नीति का ड्राफ्ट तैयार किया , क्या उसने तथ्यों का पूरा विश्लेषण किया है ? इस समिति द्वारा किये गए मूल्यांकन भी स्पष्ट नहीं है | यदि समितिनेसभी सवालो कोठीक से संबोधित किया होता तो यह कहा जा सकता है की एकमजबूत नीति कीअव्य्श्यकता है आविष्कारो को बढ़ावा देने के लिए | THEWIRE आगे पेटेंट स्ट्रेटेजी में खामिया, हाई वोल्टेज प्रोपोगंडा और पश्चिमी देशो केदबाव के बारेमें भी लिखता है |
प्रधानमंत्री मोदी जी ने पिछले वर्ष नवम्बर में यूनाइटेड Kingdom की यात्रा के दौरान वहां व्यापारियों से Intellectual Property Right के विषय में नीति बनाने का वादा किया था | भारत सरकार ने नीति कोअधिकारिक तौर परमंजूरी भी प्रधानमंत्री कीअमरीका यात्रा केपहले दे दी है | इससे पश्चिमी देशो के दबाव का तर्क देनेवालो को बल मिलता है की उनकेव्यपारियो कोवादाकरके नीति बनायींगयी, क्या भारतीय बाज़ार, आविष्कारक भीइसका लाभउठा पाएंगे ?क्या भारतीय जनता को इस नीति का कुछ लाभ मिलेगा या नयी चीजे महंगी बिकेंगी ?
इस सबंध मे श्रीमती निर्मला सीतारमण के मंत्रालय की वेबसाइट पर पूरी जानकारी उपलब्ध है (http://dipp.gov.in/English/Schemes/Intellectual_Property_Rights/National_IPR_Policy_12.05.2016.pdf)सारांश पढना हो तो Press Information Bureau की वेबसाइट पर जानकारी उपलब्ध है http://pib.nic.in/newsite/PrintRelease.aspx?relid=145338

Monday, 10 August 2015

अस्सी का किनारा और जीवन का रहस्य



वो सर्दी की शाम थी , कुहासा नहीं था
 ढलता हुआ सूरज , गंगा की लहरों पे तैरता हुआ सोना धीरे धीरे  पिघले लोहे में तब्दील हो रहा था
अस्सी की सीढियों से मैंने देखा
उस बहते हुते धातु के पन्नो में
उन पन्नो के भीतर दौड़ लगा दी मैंने
मै अकेला उन मुस्कराते हुते चेहरों से खुशिया तोड़ लेन को ललक गया
उन लहरों के भीतर सूरज  की चिटकती धुप और चाँद की चितकी चांदनी देखि

अस्सी से गंगा की लहरू के भीतर तक
मैंने देखा गंगा में आकाश गंगा को ,
अथाह जल में अनंत व्योम को
उन मुस्कुराते हुए चेहरों में अद्भुत प्रेम को
प्रक्रति और प्रेम से सुन्दर कुछ भी नहीं है

अस्सी के किनारे मैंने स्वर्ग तक की सैर कर ली
एक बार खुद से पुछा भी की कौन है
जिससे हम बने हैं , कौन है जिसने ये सब कुछ बनाया
कौन है जिसने लिखी गाथाये , इन पत्तो पर , पत्थरो पर , पानी पर

तैरते हुए पानी के भीतर ,
मैंने बात की उन स्वर्ग के रहनुमाओ से
मैंने महसूस किया है जिंदगी के सार को
स्वप्न को और वास्तविकता को एक साथ जिया है मैंने
जब से घाट से उठ के आया हूँ
विचार और मै एक दुसरे का पीछा कर रहा हूँ
कभी विचार मुझे झकझोरते हैं कभी मै उन विचारो को
मै ये चीख -2 कर सबको बताना चाहता हूँ |
सबसे पूछना चाहता हूँ
प्रक्रति , प्रेम , इश्वर क्या यही सार है या इससे इतर भी है कुछ
श्रीनिधि मिश्र

Thursday, 6 August 2015

दोपहर का अँधेरा






यहाँ दिन का सघन उजाला है, जसमे लाशो की तरह भाव शून्य लोगो के चेहरे हैं
यहाँ , नाले हैं , नहर हैं , कुएं हैं पर सब सूखे हैं |
यहाँ क्रंदन है , भय है और अन्धो की तरह दिमाग की  टाल बतोल है

आगे कुछ मिल सकता है , अगर आगे कुछ हो
आगे कुछ हो अगर तो कोशिश एक बार फिर से करी जाएगी
अगर दो लाशे एक दुसरे से मिले तो जला सकती हैं एक दुसरे को अपनी आग से
आग भगाएगी , क्रंदन को , भय को
जलती हुयी आग की छाल्चालाती हुयी आवाज़ , तोडती है ख़ामोशी को अँधेरे को


                               

इस दोपहर के अँधेरे में , रौशनी का कहीं कोई  रास्ता नहीं दीखता
आखिरी बार , एक मुट्ठी खेत की मिटटी , धीरे धीरे फिसल गयी उंगलियों के रस्ते से
ये अखिरीर रास्ता , ये रस्सी का टुकड़ा और ये भय
दोपहर के अँधेरे से मुक्त होता , अंधेरो की रौशनी की तरफ
पीछे रह गया , क्रंदन , भय , बेबसी , बच्चो की , परिवार वालो की
और कुछ सरकारी कर्मचारियों की –

श्रीनिधि मिश्र
आत्महत्या करते किसानो को श्रधांजलि रूप समर्पित

Friday, 3 July 2015

मुस्तफा कमल पाषा तारीफ़ जरुर करते महारष्ट्र सरकार की



तुर्की एक बेहद खुबसूरत देश , दुनिया में आज अप[नी खूबसूरती , खाने , पुराणी इमारतों के लिए जाना जाता है | तुर्की हमेशा से ही दुनिया में  किसी न किस वजह से जाना जाता रहा है | प्रथम  विश्व युद्ध के पहले यह मुस्लिम खलीफा  के लिए जाना जाता था | इस्लाम में तुर्की का वही रुतबा हुआ करता था जो की लगभग वेटिकेन सिटी का इसाई धर्म में है
धीरे-धीरे यह एक बार अलग अलग कारणों के लिए यद्यपि मज़ा आया दुनिया का ध्यान वापस आ रहा है। मुख्य अंतरराष्ट्रीय ध्यान केंद्रित यूरोपीय संघ (ईयू) में शामिल होने पर अक्टूबर 2005 में शुरू हुआ, जो तुर्की के यूरोपीय संघ के प्रवेश की वार्ता पर दिया गया है। लेकिन सूक्ष्म और कम स्पष्ट लगभग 90 साल शत्रुतापूर्ण धर्मनिरपेक्ष सरकारों के बावजूद तुर्की में इस्लाम के पुनरुद्धार है।

आज तुर्की शायद ही कभी मुस्लिम या इस्लामी प्रवचन में आता हो हालांकि, यह पांच सदियों से मुस्लिम दुनिया के केंद्र के लिए गया था कि घातक दिन तक, 3 मार्च, 1924, मुस्तफा कमाल पाशा अतातुर्क पैगंबर मुहम्मद के उत्तराधिकारी की खिलाफत ऑफिस को समाप्त कर दिया है, जब सर्वोच्च राजनीतिक-धार्मिक इस्लाम के कार्यालय, और सभी के विश्व नेतृत्व करने के लिए तुर्की के सुल्तान के दावे का प्रतीक मुसलमानों गया था समाप्त कर दिया।

तुर्की की आबादी का 98% आधिकारिक तौर पर मुस्लिम है, लेकिन मुसलमानों के धार्मिक कार्यक्रमों में भागीदारी  के अनुपात के रूप में कम के रूप में 20% है। हालांकि चर्च उपस्थिति धीरे-धीरे तुर्की में गिर गई, जहां यूरोप में विपरीत यह विवश और लगातार Kemalist secular धर्मनिरपेक्ष सरकारों और सेना द्वारा इस्लाम को कमजोर करने के लिए एक व्यवस्थित प्रयास का परिणाम है।

इस्लाम के प्रति दुश्मनी जल्दी 1920 के दशक में शुरू हुआ। एक सैन्य कमांडर, मुस्तफा कमाल पाशा मृत तुर्क साम्राज्य के उत्तराधिकारी राज्य के रूप में तुर्की गणराज्य के लिए फार्म की आजादी की तुर्की युद्ध का नेतृत्व किया। इस के लिए मुस्तफा कमाल बहुत लोकप्रिय है और सभी तुर्कों ने बहुत अच्छा लगा बन गया। इसके बाद वह तुर्की गणराज्य के पहले राष्ट्रपति बन गए। तुर्क वह तुर्क के पिता (माननीय नाम औपचारिक रूप से 1934 में तुर्की ग्रां सभा द्वारा उसे प्रस्तुत करने के लिए) है, जिसका अर्थ नाम 'अतातुर्क' दिया गया था उसे इतना सम्मानित

 
मुस्तफा कमाल पाशा अतातुर्क की तुर्क मुस्तफा कमाल पाशा अतातुर्क पिता कोई साधारण नेता थे। वह एक चतुर राजनेता और अद्भुत रणनीतिकार थे । अपनी दूरगामी योजना निष्पादित करने के लिए  एक मास्टर प्लान, जो की  Kemalist phillospophy  या Kemalism विचारधारा  के रूप में जाना जाता है उसे लागु किया | अतातुर्क और उसके साथियों ने सार्वजनिक रूप से धर्म के मूल्य सवाल करना शुरू कर दिया और देखने धर्म आधुनिक विज्ञान और धर्मनिरपेक्षता के साथ संगत नहीं था आयोजित इस रणनीति में विश्वास आधुनिकता के लिए जरूरी था।

सुधारों तुर्क इस्लामी अतातुर्क शासन अपने तुर्क अतीत के अवशेष से तुर्की के आधुनिकीकरण के उद्देश्य के साथ तुर्की समाज के एक कट्टरपंथी सुधार के साथ Kemalist विचारधारा को लागू करने के लिए कदम से कदम शुरू कर दिया। उनकी वैचारिक प्रतिबद्धता के साथ साथ  में अतातुर्क सरकार इस्लामी धार्मिक संस्थाओं को समाप्त कर दिया; यूरोपीय कानूनी कोड को  शरिया कानून की जगह; ग्रेगोरियन कैलेंडर को  इस्लामी कैलेंडर की जगह; अरबी लिपि की जगह। लैटिन स्क्रिप्ट के साथ तुर्की भाषा में लिखने के लिए इस्तेमाल किया और सभी धार्मिक स्कूलों को बंद कर दिया गया था|

इसके अलावा अतातुर्क देश के 70,000 मस्जिदों में पदभार संभाल लिया है और नई मस्जिदों के निर्माण के लिए सीमित है। मौलवी और इमामों (प्रार्थना नेताओं) नियुक्त किया है और सरकार द्वारा विनियमित, और धार्मिक निर्देश राष्ट्रीय शिक्षा मंत्रालय द्वारा उठाए गए थे। मस्जिदों अतातुर्क के आदेश के अनुसार प्रचार करने के लिए गए थे और Kemalist विचारधारा का प्रसार करने के लिए इस्तेमाल किया गया।

सूफी मुसलमानों के लिए यह और भी बदतर था। अतातुर्क बैठक स्थानों, सूफी लॉज, मठों को जब्त कर लिया और उनके रस्में और बैठकों गैरकानूनी घोषित किया।

अतातुर्क आधुनिकता के लिए तुर्की मस्जिद मुस्लिम हिजाब  को किसी भी धार्मिक पोशाक पहने हुए या गैर धार्मिक नहीं किया जा रहा के रूप लागु  किया था। तो वह तुर्की के नागरिकों को क्या कपड़ा पहनना चाहिए ये नागरिको की मर्जी होगी  का आदेश दिया। स्थानीय धार्मिक नेताओं के पारंपरिक पहनावे को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया था। फेज (तुर्की टोपी) पुरुषों और घूंघट और हिजाब (headscarves) के लिए प्रतिबंध लगा दिया था हतोत्साहित और महिलाओं के लिए प्रतिबंधित किया गया।
अतातुर्क ने रातों रात देश की महिलाओं को इस्लामिक जड़ता और गुलामी से मुक्त कर दिया
उन्होंने महिलाओं को समाज में बराबरी का दर्जा दिया . 1935 के आम चुनावों में तुर्की में 18 महिला सांसद चुनी गयी थी . ये वो दौर था जब की अभी बहुत से यूरोपीय देशों में महिलाओं को मताधिकार तक न था .
मुस्तफा कमाल अतातुर्क ने सिर्फ 10 साल में इस्लामिक Ottoman empire के एक जाहिल देश को एक modern देश बना दिया था


अतातुर्क और उनके सहयोगियों ने भी इस्लाम को भी तुर्की सभ्यता के अनुसार  Turkify करना चाहा था। वे भगवान के लिए तुर्की शब्द Tanri के बजाय अल्लाह का उपयोग करें और Salaath (5 बार की नमाज) और Azaan (प्रार्थना के लिए कॉल) में तुर्की भाषा का उपयोग करने के लिए मुसलमानों का आदेश दिया। ये निरर्थक परिवर्तन गहरा वफादार मुसलमानों परेशान और प्रार्थना करने के लिए फोन का अरबी संस्करण के लिए एक वापसी के लिए 1933 में जो नेतृत्व में व्यापक असंतोष के कारण होता है।

मुस्तफा कमाल अतातुर्क की वजह से उनकी कठोरता और इस्लाम हमेशा दमन के बावजूद लोकप्रिय स्तर पर एक मजबूत ताकत था तथ्य यह है कि उसके निरर्थक कानूनों की है कि कुछ उनके उत्तराधिकारियों द्वारा रद्द किए गए करने के बाद 1938 में मृत्यु हो गई।

अगर कोई कहता है की मदरसों से इस्लाम का आधुनिकी कारण होगा या मदरसे किस हिक्षा से हम आगे की और बढ़ेंगे तो तुर्की और अफगानिस्तान में तुलना कर के देख लीजिये , एक मुल्क ने इस्लाम को छोड़ के आधुनिकता का रास्ता पकड़ा और दुसरे ने आधुनिकता छोड़ के इस्लामिक कट्टरपंथ का |  महाराष्ट्र सर्कार के मदरसों को स्कूल की श्रेणी से बाहर करने का निर्णय काबिले तारीफ है |

हिन्दुस्तानी उलेमा मौलवी जो की ये तक बताए हैं की किस पार्टीको वोट देना है किसको नहीं , कुछ तो वजह होगी की पाषा का नाम तकनहींलेते जबकि तुर्की एक अच्छा खासा इस्लामिक देश है | पाषा ने जो किया है उसका जीता ज्कगता उदाहरण वह की सडको पे हँसते खिलखिलाते बच्चे औरते और मर्द , बेधड़क घूमते हुए जो मन आया पहने , जहा मन आया घुमे , जिंदगी जीता हुआ तुर्की और जिंदगी कटते हुए अफगानी , तालिबानी आपके सामने हैं अब आप चुनो की आप कौन सी तालीम लेना चाहते हो बिना परदे के हंसती हुयी जिंदगी में या हिजाब में कटती हुयी जिंदगी |