कश्मीरी पंडितो का घाटी से विस्थापन शुरू हुआ 1989 से ,विस्थापन एक हल्का शब्द है वास्तविकता में अगर ये कहा जाए की उनको खदेड़ दिया गया तो अतिश्योक्ति नहीं होगी | विस्थापन की प्रक्रिया भले ही 1988-89 में शुरू हुयी पर
संकते उसके पहले से साफ़ थे भविष्य कैसा
होगा , कश्मीरी पंडितो ने इसको एक हाल
फ़िलहाल की समस्या मान के नज़रन्दाज किया , या इसके विरोध का साहस नहीं जुटा पाए , या संख्याबल और दहशतगर्दो के
खुले आम , कत्ले आम के खौफ से आत्म समर्पण सा कर के अपना सब कुछ जमीन घर छोड़ के वह
से निकल गए | वजह आप कुछ भी मान सकते हैं ढूंढ सकते हैं लेकिन किसी भी लेख में , उस समय के अख़बार में आपको ये खबर
नहीं मिलेगी की कश्मीरी पंडितो ने भी विरोध में हथियार उठाये हों , यूँ तो कश्मीरी
पंडितो पर जुल्म नयी बता नहीं थी , इससे पहले भी देश की आज़ादी के बाद मुस्लिम दंगो
में उससे पहले डोगरा वंश के आधीनता में , उससे पहले पठानों के साम्राज्य में भी उनपर जुल्म होते रहे पर ये
ढाई दशक पहले की घटना का जिक्र इस लिए है क्यूंकि अब
पंडितो के पुनर्स्थापन पर तरह तरह की बात-चीत बयां-बाजी सुनने को आ रही है |
1985-1989 के बीच में कश्मीर में लाल चौक पर बस वाले चिल्ला- चिल्ला के सोपोरे की बसों में सवारी भरते थे , यासीन
मलिक ( COMAANDER I CHIEF OF JAMMU KASHMIR LIBERATION
FRONT –JKLF) उन सबको कमांड
करता था और नौजवान बसों में भर भर
के सरहद पार पाकिस्तान में
आतंकी ट्रेनिंग के लिए भेजे जाते थे|
बसों की बसे भर के जाती और बसों की बसे भर के आती थी , वापस
आ के वो सब खुले आम सडको पर AK 47 ले के निकलते थे , रैलियाँ निकालते थे सडको पर
हुजूम के हुजूम चलते थे नारे बाजी करते
हुए , हम क्या चाहते आज़ादी , ये वो चार शब्द हैं जिनको सुन के किसी भी कश्मीरी पंडित , हिन्दू और वहा उस वक्त रहे सिक्खों
की रूह तक काँप जाती है | इन जुलूसो
के आगे उन आतंक वादियों ने पहले निशाना बनाया वहा की सरकारी नौकरियों में काम करने वाले
कश्मीरी पंडितो को , कश्मीरी पंडितो की
हत्याए आम बात हो गयी थी , रोज बस दो ही
तरह की खबरे होती थी , मुजाहिदीन आतंकियों के जुलुस और कश्मीरी पंडितो पर हमले की
| एक वरिष्ठ और नामचीन कश्मीरी पंडित टीका
लाल टिप्पू ने यासीन मलिक को एक खुला ख़त लिख कर के पुछा की आज़ाद कश्मीर के जिस संघर्ष के नाम पर ये
तनाव , भय और आतंक का माहौल बना है उस आज़ाद कश्मीर में कश्मीरी पंडितो की क्या
भूमिका होगी , उनके लिए आजाद कश्मीर में क्या स्थान होगा | इस ख़त का जवाब JKLF के आतंकियो ने उनको दिन दहाड़े गोली मार कर
दिया | ऐसी ही एक और घटना में एक सरकारी अधिकारी थे डी के कुंजू साब ,
आतंकी उनके घर में घुसे तो वो एक
चावल के ड्रम में छुप गए , पूरे घर के चप्पे चप्पे में तलाश
की जब वो नहीं मिले तो आतंकी बहार निकलने लगे तो पड़ोस की एक औरत ने इशारा कर के
बताया की कुंजू कहा छुपा है , दहशतगर्द
अन्दर गए और उनको गोलियों से छलनी कर दिया | हिजबुल मुजाहिदीन ने 4 जनवरी 1990 को एक उर्दू अखबार आफ़ताब में साफ़ साफ़
खबर छपवाई कर कश्मीरी पंडितो को
कश्मीर छोड़ने की धमकी दी , इसी खबर को एक
दुसरे उर्दू अख़बार अल-सफा ने फिर से छपा कुछ दिन बाद , इसके बाद 19 जनवरी 1990 को रातो रात लगभग एक लाख पंडित परिवार सहित घाटी छोड़ के जम्मू आ
गये| यहाँ भी उनके साथ कम ज्यादती नहीं हुयी
, उनकी मजबूरी को देखते हुए जम्मू के हिन्दू परिवारों ने 4-5 गुने दाम पर उनको माकन किराये पर दिए, हर चीज महंगी मिलती थी , असुरक्षा अब भी थी जान का खौफ नहीं
था पर और कई तरह के कष्ट उठाते हुए , डर -असुरक्षा के संग निर्वासन को झेला हैं पंडितो के कुनबे ने
| इतना सब जान के ऐसा लगता है कि शुक्रिया ऊपर वाले का कि हम कश्मीरी पंडितो के वंश में नहीं पैदा हुए , जाने कैसे झेली है इतनी पीड़ा उनके परिवारों ने बच्चो ने , बुजुर्गो ने | जिन घरो से लड़के आतंकी बन गए थे उनके घर वालो ने कश्मीरी पंडितो के
घरो पर इशान बना दिए थे की जब ये मर जायेगा या भाग जाएगा तो इस घर पर कौन कब्ज़ा
करेगा ये तय करने के लिए , वहां के ट्रक वालो ने कश्मीरी पंडितो को पलायन के समय सामान ले जाने से मन कर दिया की सामान नहीं ले के जाओगे
, जब कुछ लोग जम्मू से ट्रक वालो को ले के आये तो पड़ोसियों ने सामान नहीं ले जाने
दिया की जाना है तो खाली हाथ जाओ नहीं यही
मरो | उस समय जिन जिन के घर के लोग आतंकी
बने उनका आस पास के गाँवों में रुतबा बढ़ा
मान लिया जाता था , कोई उनसे बहस नहीं
करता था , लोग उनसे डरते थे जब फ़ौज ने वापस सालो तक की लडाई के बाद स्थिति आज की
हालत में लायी है तब भी JKLF के जो आतंकी मारे गए या जिन्होंने आत्म समर्पण कर दिया उनको यासीन मलिक पेंशन देता है 1000 से 3000 तक , कहा से आता है ये
पैसा ये किसी से छुपा नहीं है |
इस तरह के हालातो में जिनको कश्मीर छोड़ कर , घर जमीन छोड़ कर भागने को मजबूर कर
दिया तो उनके पुनर्विस्थापन पर हुर्रियत विरोध करती है और कहती है की ये लोग विशेष
कालोनी में नहीं पहले जैसे रहते थे वैसे रहो | कहाँ रहें जा के
उन घरो में जिन पर दहशतगर्दो के परिवार
वालो ने कब्ज़ा कर लिया ,वहां जहा पड़ोसियों ने बता दिया की कुंजू साब कहा छुप्पे
हैं , वह जहा दूध वाले , धोबी , सब्जी वालो ने निशान लगा के रखे थे की जब ये घर खाली
होगा तो कौन कब्ज़ा करेगा ? कहाँ रहें जा के ?
और कहने की बात देखिये की ये प्रवचन कौन दे रहा है यासीन मलिक, जिसने इस सवाल के
जवाब में की पंडितो का आजाद कश्मीर में क्या हिस्सा है , क्या भूमिका है का जवाब
दिन दहाड़े गोली मार कर दिया था | वही
यासीन मलिक जो की नौजवानों को बसे भर भर के आतंकी
ट्रेनिंग के लिए पाकिस्तान भेजने का इन्तेजाम करवाता था | वही जो कि आज भी
आतंकियों और उनके परिवार वालो को पेंशन
बांटता है | हमारी सरकारे क्यू
हुर्रियत को कश्मीरी नेतृत्व का हिस्सा मानती
है , हुर्रियत उस बन्दर जैसा है जो
दोनों बिल्लियों की रोटी पे हाथ मार रहा
है दोनों सरकारे उनको अपने तरफ करना चाहती है और दोनों उनको पैसा , घर सुरक्षा सब
देती है | पाकिस्तान के लिए तो हुरियता ने क्या नहीं किया ,आतंकीयो की भर्ती ट्रेनिंग ,भारतीय जमीन पर हमले , क्या
कुछ नहीं किया , भारत के लिए क्या किया ?
जब तक ये हुर्रियत के स्वघोषित कश्मीरी नुमाइंदे , यासीन मलिक जैसे आजाद घूमेंगे
कश्मीर में तब तक पुनर्विस्थापन की कितनी
भी योजना बना लीजिये शायद ही कोई
वापस जाना चाहे | ढाई दशक लग गए उनको अपनी टूटी फूटी
जिंदगी को बटोर के फिर से वापस एक
घर जैसा बनाने में और अब कहते हो की चलो वापस चले वहीँ जहा यासीन मलिक जैसे आज़ाद
हैं , वहीँ जहाँ आज भी तिरंगा फहराना सबके
बस की बात नहीं , वही वापस चले ?
sources :
2-Our moon Has Blood Clots -Rahul Pndita
3-Curfewed Nights -Bashrat Peer
various articles on Internet and media reports