Monday 26 November 2012

क्या यही जिंदगी है , और यही जीवन का सार है ? ( Life and its Essence ?)

मुट्ठी भर जिंदगी और ढेर सारे सपने 
सपनो की चाहत और जरुरतो की जड़ में हम 
एक दौड़ सी चल रही है ख्वाहिशों और हकीकत के बीच ,

एक द्वन्द में फंसा हर बार नए ख्वाब बुनता हूँ
पूरा करे अपने ख्वाब को बिना विश्राम के नए ख्वाबों के पीछे चल पड़ता हूँ
अजीब सी विडम्बना है -ना बिना ख्वाबों के सुकून , न ख्वाबों की दौड़ में सुकून 
बस चला जा रहा हूँ , चला जा रहा हूँ
नयी मंजिलों की आस में , अपने नए क्षितिज क्सितिज़ की तलाश में
कभी मंजिलें अछि लगती है कभी रास्ता अच्छा लगता है , कभी साथी अच्छे लगते हैं 
सब सामयिक सा है , क्षणिक भर कुछ भी स्थायी  नहीं है 
सिर्फ  मै  मेरी गति और बार बार बदल  जाता हुआ मेरा नया  क्षितिज

ये अल्पविराम  के क्षण ,ये प्राप्ति का आभास , ये पूर्णता की ख़ुशी
सब कुछ क्षणिक है
फिर नए क्षितिज की आस मुझे उद्विग्न करेगी 
मै फिर  से चलूँगा , मै  फिर से लडूंगा ,मै  फिर एक नए क्षितिज पर विश्राम करूँगा


ये अल्पविराम  के क्षण ,ये प्राप्ति का आभास , ये पूर्णता की ख़ुशी
सब कुछ क्षणिक है
फिर नए क्षितिज की आस मुझे उद्विग्न करेगी 
मै फिर  से चलूँगा , मै  फिर से लडूंगा ,मै  फिर एक नए क्षितिज पर विश्राम करूँगा

कहते हैं गतिमय    का एहसास है
क्या यही जिंदगी है और यही जीवन का सार है ? 

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