Sunday 13 April 2014

एक दिन शाम हो, समय हो , सुकून हो

एक दिन शाम हो, समय हो , सुकून हो
न ऑफिस की चिंता हो , न  मोबाइल  पे कोई  कोई कॉल का इंतज़ार हो
ढलता हुआ लाल सूरज हो , पेड़ो की हवा हो
लकड़ी की बेंच हो और चाय हो

चारो तरफ पेड़ो का अपना एक शहर हो ,साफ़ आसमान हो
और  आसमान में देखता रहूँ न जाने क्या सोचता रहूँ
हवा चेहरे से  टकराती  रहे और सिर्फ चिड़ियों की ही आवाज़ आती रहे
आँखे बंद कर के सिर ऊपर कर के  रहूँ ।

फिर धीरे से रात हो…………………।
हलकी सी ठण्ड हो , ओस की झरती हुयी आगत हो
सुलगती हुयी सिगड़ी में हलकी सी आंच हो
हलकी सी रौशनी हो , एक बढ़िया सी किताब हो
न कहीं जाने की जल्दी हो न किसी के आने का ध्यान हो
 एक और कप चाय हो और बस यही एहसास हो

---श्रीनिधि मिश्रा

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