Sunday 13 April 2014

कहो बनारस कैसा लगता है ?



बनारस आज कल बहुत सुनने को मिलता है खबरों में चलो बनारस की बात पूछते हैं बनारस से बनारस का हाल---बनारस सदियों पुरानी नगरी , मानव सभ्यता के जीवंत  चिर उदाहरणो में से एक काशी | भोलेनाथ की काशी,कहते है की भोलेनाथ के त्रिशूल पे बसी है काशी जब प्रलय में सब कुछ खत्म हो जायेगा तब भी हिमालय और काशी बचे  रहेंगे । भोलेनाथ की नगरी काशी यहाँ यमराज भी बिना महादेव की आज्ञा के नहीं आते हैं -काशी के किस्से सुनने और पढ़ने बैठो तो लगता है की इतिहास से भी ज्यादा पुरानी है काशी



जो काशी में होता है वो शायद ही कहीं होता हो काशी का अपना अलग अंदाज़ है -यहाँ लोग भोलेनाथ को भगवान कम यार ज्यादा समझते हैं काशी  कबीर की साखी और तुलसी तुलसी की चौपाई है , अस्सी घाट पे आज भी बैठो तो अलग ही फील आता है | बनारस में पान वाला भी इंटेलेक्टयाले होता है यहाँ बकर में आप एक घाट किनारे बैठे निपट निठल्ले से भी पराजित हो सकते है| हमारे मन मस्तिष्क में ऐसा ही बनारस बस्ता है सुबहो बनारस वाला बनारस , गंगा किनारे के सुकून वाला बनारस लेकिन आज कल अक्सर समाचार में अखबारों में एक अलगे बनारस दीखता है , अलगे भाषा बोलता हुआ - बनारस का चुनाव , किसको अपनाएगा बनारस और इसी तरह मिर्च मसाला वाली खबरों में दीखता है बनारस -कैसा लगता है बनारस ढेर अखबार वाले सब फोटो  खींचते  इधर उधर -मैंने  बनारस को कभी इस तरह नहीं देखा
मुझे  बनारस में साल रहने का सौभाग्य मिला, थोड़ा समय लगता है बनारस को समझने में मस्ती की जगह है ये संकरी सड़के , पुराने किस्से प्रोफेशनल प्रोफेशनल लोग थोड़ा काम तादात में हैं एक बार बनारस से प्रेम हो गया तो फिर देखिये आनंद खैर वापस मुद्दे पर आते हैं आलसी दोस्त होने का एक नतीजा ये था की मै अक्सर अकेले घूमने निकल जाता था अस्सी घाट से जैन घाट कभी कभी नाव की यात्रा दशाश्वमेध घाट तक पुराने लोगो की  बाते सुनना उनसे बाते करना , कभी नाव साझा में मिल गयी तो गाइड का सैलानियों को किस्से सुनाना
यकीन मानिए मैंने कबीर के किस्से सुने , तुलसी बाबा की किस्से सुने , उस्ताद बिस्मिल्ला खान कहा बैठ के  बांसुरी बजाते थे , छुन्ना  मिसिर के मसान में नाचते शिव शम्भू भी सुने , सारनाथ में भगवान बुद्ध की बाते भी सुनी इनसे जुड़े सैंकड़ो किस्से , किवदंती , जगहे की यहाँ बैठते थे , यहाँ ये कहा , यहाँ ये किया , यहाँ इनको दर्शन दिया , यहाँ तुलसी बाबा रामायण पढ़ते थे यहाँ कबीर अपने शिष्यों को सखी सुनाते थे ,न जाने क्या क्या हर चीज सुनी है लगभग भारतेंदु हरिश्चंद्र से ले के मुंशी पेमचंद तक के वंशजो , उनके निवास उनकी हस्तलिखित रचनाये , यहाँ की ठंडाई , यहाँ की चाट , यहाँ की भांग ,यहाँ की भीड़ ,यहाँ का सन्नाटा सब सुना है सब महसूस किया है
जो अब सुन रहा हूँ वो बस पहली बार सुना है -बनारस और  राजनीती
ऐसा नहीं है की बनारस से नेता नहीं आये प्रातः स्मरणीय मालवीया जी की कर्मभूमि है बनारस , आदरणीय शाश्त्री जी का मुग़ल सराय भी बगल में ही है , बाबू  जगजीवन राम BHU में ही पढ़े थे
हो सकता है तत्कालीन समय में राजनीती होती रही हो ,हम इस अनुभव से अछूते रह गए -अभी तो मुल्क भर की निगाह टिकी है की गंगाजल से किसका अभिषेक करेगा बनारस ?
नए राजनीतिक उठापटक ने बनारस को मीडिया की आँखों का नूर  बना दिया है
ये वाला अनुभव तो बनारस का भी नया है , मीडिया की चकाचौंध , भावी प्रधानमंत्री के बनारसी होने की सुगबुगाहट , उम्मीदे तो पक्का बढ़ गयीं होंगी
नया नया उतावलापन , कैसा लगता है ये सब बनारस ?
कभी फिर बनारस जाने को मिले तो लोगो से ये अनुभव भी पता चले
कचौड़ी जलेबी से सुबह करके संतुष्ट हो जाने वाले बनारस को ये सब कैसा लगता है ?


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