बनारस आज कल बहुत सुनने को मिलता है खबरों में चलो बनारस की बात पूछते हैं बनारस से बनारस का हाल---बनारस सदियों पुरानी नगरी
, मानव सभ्यता के जीवंत चिर
उदाहरणो में से
एक काशी | भोलेनाथ की काशी,कहते है की
भोलेनाथ के त्रिशूल
पे बसी है
काशी जब प्रलय
में सब कुछ
खत्म हो जायेगा
तब भी हिमालय
और काशी बचे रहेंगे
। भोलेनाथ की नगरी
काशी यहाँ यमराज
भी बिना महादेव
की आज्ञा के
नहीं आते हैं
-काशी के किस्से
सुनने और पढ़ने
बैठो तो लगता
है की इतिहास
से भी ज्यादा
पुरानी है काशी
।
जो काशी में
होता है वो
शायद ही कहीं
होता हो ।
काशी का अपना
अलग अंदाज़ है
-यहाँ लोग भोलेनाथ
को भगवान कम
यार ज्यादा समझते
हैं । काशी कबीर
की साखी और
तुलसी तुलसी की
चौपाई है , अस्सी
घाट पे आज
भी बैठो तो
अलग ही फील
आता है | बनारस
में पान वाला
भी इंटेलेक्टयाले होता
है यहाँ बकर
में आप एक
घाट किनारे बैठे
निपट निठल्ले से
भी पराजित हो
सकते है| हमारे मन मस्तिष्क में ऐसा ही बनारस बस्ता है सुबहो बनारस वाला
बनारस , गंगा किनारे के सुकून वाला बनारस लेकिन आज कल अक्सर
समाचार में अखबारों में एक अलगे बनारस दीखता है , अलगे
भाषा बोलता हुआ - बनारस
का चुनाव , किसको
अपनाएगा बनारस और इसी
तरह मिर्च मसाला
वाली खबरों में
दीखता है बनारस
-कैसा लगता है
बनारस ढेर अखबार
वाले सब फोटो खींचते इधर
उधर -मैंने बनारस को कभी
इस तरह नहीं
देखा ।
मुझे बनारस
में २ साल
रहने का सौभाग्य
मिला, थोड़ा समय
लगता है बनारस
को समझने में
मस्ती की जगह
है ये संकरी
सड़के , पुराने किस्से प्रोफेशनल
प्रोफेशनल लोग थोड़ा
काम तादात में
हैं । एक
बार बनारस से
प्रेम हो गया
तो फिर देखिये
आनंद खैर वापस
मुद्दे पर आते
हैं । आलसी
दोस्त होने का
एक नतीजा ये
था की मै
अक्सर अकेले घूमने
निकल जाता था
। अस्सी घाट
से जैन घाट
कभी कभी नाव
की यात्रा दशाश्वमेध
घाट तक ।
पुराने लोगो की बाते
सुनना उनसे बाते
करना , कभी नाव
साझा में मिल
गयी तो गाइड
का सैलानियों को
किस्से सुनाना ।
यकीन मानिए मैंने कबीर
के किस्से सुने
, तुलसी बाबा की
किस्से सुने , उस्ताद बिस्मिल्ला
खान कहा बैठ
के बांसुरी
बजाते थे , छुन्ना
मिसिर
के मसान में
नाचते शिव शम्भू
भी सुने , सारनाथ
में भगवान बुद्ध
की बाते भी
सुनी इनसे जुड़े
सैंकड़ो किस्से , किवदंती , जगहे
की यहाँ बैठते
थे , यहाँ ये
कहा , यहाँ ये
किया , यहाँ इनको
दर्शन दिया , यहाँ
तुलसी बाबा रामायण
पढ़ते थे यहाँ कबीर अपने शिष्यों को सखी सुनाते थे ,न जाने क्या
क्या हर चीज
सुनी है लगभग
। भारतेंदु हरिश्चंद्र
से ले के
मुंशी पेमचंद तक
के वंशजो , उनके
निवास उनकी हस्तलिखित
रचनाये , यहाँ की ठंडाई , यहाँ की चाट , यहाँ की भांग
,यहाँ की भीड़ ,यहाँ का सन्नाटा सब सुना है सब महसूस किया है
जो अब सुन
रहा हूँ वो
बस पहली बार
सुना है -बनारस
और राजनीती
ऐसा नहीं है
की बनारस से
नेता नहीं आये
प्रातः स्मरणीय मालवीया जी
की कर्मभूमि है
बनारस , आदरणीय शाश्त्री जी
का मुग़ल सराय
भी बगल में
ही है , बाबू जगजीवन
राम BHU में ही
पढ़े थे ।
हो सकता है
तत्कालीन समय में
राजनीती होती रही
हो ,हम इस
अनुभव से अछूते
रह गए -अभी
तो मुल्क भर
की निगाह टिकी
है की गंगाजल
से किसका अभिषेक
करेगा बनारस ?
नए राजनीतिक उठापटक ने
बनारस को मीडिया
की आँखों का
नूर बना
दिया है ।
ये वाला अनुभव
तो बनारस का
भी नया है
, मीडिया की चकाचौंध
, भावी प्रधानमंत्री के बनारसी
होने की सुगबुगाहट
, उम्मीदे तो पक्का
बढ़ गयीं होंगी
नया नया उतावलापन
, कैसा लगता है
ये सब बनारस
?
कभी फिर बनारस
जाने को मिले
तो लोगो से
ये अनुभव भी
पता चले ।
कचौड़ी जलेबी से सुबह
करके संतुष्ट हो
जाने वाले बनारस
को ये सब
कैसा लगता है
?
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