Monday 11 May 2015

मै दरिया हूँ ,


 

मै दरिया हूँ ,
दरख्तों को बहुत गहरे तक जनता हूँ
इनको जड़ो को देख के आशियाने की पहचान करता हूँ
कितने पंक्षी
कितने घोसले
कितने फल
कितने फूल
कितनी जलावानी लकड़ी
कितनी दवाई है
सअब जानता हूँ |
ऐसे कई दरख्तों को जानता हूँ
ऐसे कई आशियानों को जानता हूँ
मै एक दरिया हूँ
मै बहुत कुछ जानता हूँ |
इन घाटो पर बैलो के गले की घघंटिया
सुबह सुबह की हलचल
धीरे धीरे कम होते मेल जोल
ख़तम होते रिश्ते
इंसानों के दरख्तों से , दरिया से ,
सब जनता हूँ |
मै एक दरिया हूँ बहुत कुछ जानता हूँ |
-श्रीनिधि मिश्र


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